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सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

पेड़ वाला भूत







बात उन दिनों की है जब हर गाँव, बाग-बगीचों में भूत-प्रेतों का साम्राज्य था। गाँवों के अगल-बगल में पेड़-पौधों, झाड़-झंखाड़ों, बागों की बहुलता हुआ करती थी ।एक गाँव से दूसरे गाँव में जाने के लिए पगडंडियों से होकर जाना पड़ता था। कमजोर लोग खरखर दुपहरिया या दिन डूबने के बाद भूत-प्रेत के डर से गाँव के बाहर जाने में घबराते थे या जाते भी थे तो दल बनाकर। हिम्मती आदमी दल का नेतृत्व करता था और बार-बार अपने सहगमन-साथियों को चेताया करता था कि मुड़कर पीछे मत देखो। जय हनुमान की दुहाई देते हुए आगे बढ़ो।





हमारे गाँव के मास्टरसाहब पेट का दर्द से परेशान थे । उनकी 

पेट का दर्द  इतना  बड़ गय़ा  कि उनके जान की बन गई। बहुत सारी  दवाई कराई गई; मन्नतें माँगी गई, ओझाओं-सोखाओं को अद्धा, पौवा के साथ ही साथ भाँग-गाँजा और मुर्गे, बकरा भी भेंट किए गए पर पेट का दर्द  टस से मस नहीं हुआ । उसी समय हमारे गाँव में कोई महात्मा पधारे थे और उन्होनें सलाह दी कि अगर मास्टरसाहब को कई  साल पुराना सिरका पिला दिया जाए तो पेट का दर्द  छू-मंतर हो जाएगा । अब क्या था, मास्टरसाहब के घरवाले, गाँव-गड़ा, हितनात सब लोग कई साल पुराने सिरके की तलाश में जुट गए। तभी कहीं से पता चला कि पास के गाँव सिधावें में किसी के वहाँ कई  साल पुराना सिरका है।
अब सिरका लाने का बीड़ा मास्टरसाहब के ही एक लँगोटिया यार श्री रामरूप  ने उठा लिया । साम के समय 
रामरूप सिरका लाने के लिए पास के  गाँव में गए। (जों  हमारे गाँव से लगभग एक कोस पर है) रामरूप सिरका लेकर जिस रास्ते से चले उसी रास्ते में एक बहुत पुराना  पेड़ था और उसपर एक  भूत रहता था। उसका खौफ इतना था कि वहाँ बराबर लोग जेवनार चढ़ाया करते थे ताकि वह उनका अहित न कर दे। अरे यहाँ तक कि वहाँ से गुजरनेवाला कोई भी व्यक्ति यदि अंजाने में सुर्ती बनाकर थोंक दिया तो वह भूत ताली की आवाज को ललकार समझ बैठता था और आकर उस व्यक्ति को पटक देता था। लोग वहाँ सुर्ती, गाँजा, भाँग आदि चढ़ाया करते थे।अभी रामरूप उस  पेड़ से थोड़ी दूर ही थे तब तक सिरके की गंध से वह भूत बेचैन हो गया और सिरके को पाने के लिए रामरूप के पीछे पड़ गया। रामरूप भी बहुत ही निडर और बहादुर आदमी थे, उन्होंने भूत को सिरका देने की अपेक्षा पंगा लेना ही उचित समझा। दोनों में  पटका-पटकी शुरु हो गई। भूत कहता था कि थोड़ा-सा ही दो लेकिन दो। पर रामरूप कहते थे कि एक बूँद नहीं दूँगा; तूझे जो करना है कर ले। अब भूत अपने असली रूप में आ गया और लगा उठा उठाकर रामरूप को पटकने पर रामरूप ने भी ठान ली थी कि सिरका नहीं देना है तो नहीं देना है। पटका-पटकी करते हुए रामरूप गाँव के पास आ गए पर भूत ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और वहीं एक छोटे से गढ़हे में ले जाकर लगा उनको गाड़ने। अब उस भूत का साथ देने के लिए एक बुढ़ुआ (जो आदमी पानी में डूबकर मरा हो)जो वहीं पास की पोखर में रहता था आ गया था। अब तो रामरूप कमजोर पड़ने लगे। तभी क्या हुआ कि गाँव के कुछ लोग रामरूप की तलाश में उधर ही आ गए तब जाकर रामरूप की जान बची।
दो-तीन बार सिरका पीने से मास्टरसाहब के  पेट का दर्द  तो एक-दो दिन में छू-मंतर हो गया  पर रामरूप को वह  भूत बकसा नहीं अपितु उन्हें खेलाने लगा। मास्टरसाहब ताजा सिरका बनवाकर और सूर्ती, भाँग आदि ले जाकर उस पेड़ के नीचे चढ़ाए और उस भूत को यह भी वचन दिया कि साल में दो बार वे जेवनार भी चढ़ाएँगे पर तुम मेरे लँगोटिया यार को बकस दो। पेड वाले भूत ने रामरूप को तो बकस दिया पर जबतक मास्टरसाँहब थे तबतक वे साल में दो बार उस पेड़ के नीचे जेवनार जरूर चढ़ाया करते थे।
उस पेड़ को गिरे लगभग १0-2०  साल हो गए हैं और वहीं से होकर एक पक्की सड़क भी जाती है पर अब वह भूत और वह पेड़  केवल उन पुराऩे  लोगों के जेहन में है जिनका पाला उस भूत से पड़ा।
सिरका चाहें आम का हो या कटहल का या किसी अन्य फल का पर यह वास्तव में पेट के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है और जितना पुराना होगा उतना ही बढ़िया ।

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